वाशिंटन। अमरीकी एजेंसी यूएस कमिशन फोर इंटरनेशनल रिलिजियस फ्ऱीडम के मुताबिक़, कोविड 19 महामारी के इस दौर में ऐसी रिपोर्ट्स आई हैं कि भारत सरकार सीएए का विरोध कर रहे मुस्लिम एक्टिविस्ट को गिरफ़्तार कर रही है. इसमें सफ़ूरा ज़रगर भी हैं, जो गर्भवती हैं. ऐसे समय में भारत को चाहिए कि वो इन्हें रिहा करे, उन लोगों को निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए जो विरोध-प्रदर्शन के अपने लोकतांत्रिक अधिकार का प्रयोग कर रहे हैं.
एजेंसी ने 2019 के इस वार्षिक रिपोर्ट में भारत को टियर-2 की श्रेणी में रखा है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि एनआरसी मुस्लिमों के साथ भेदभाव के लिए जानबूझकर किया गया प्रयास है. ग़ौरतलब है कि असम में एनआरसी की अंतिम लिस्ट जारी होने के बाद क़रीब 19 लाख लोगों को इससे बाहर रखा गया था.
निशाने पर मुसलमान?
रिपोर्ट में दिसंबर 2019 में पास हुए नागरिकता संशोधन क़ानून पर चिंता व्यक्त की गई है. रिपोर्ट के अनुसार सीएए से मुस्लिमों को निशाना बनाने की चिंता बढ़ गई है. इस क़ानून में पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के ग़ैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों को नागरिकता देने की बात कही गई है. रिपोर्ट में दावा किया गया है कि भारत में सीएए लागू किए जाने के बाद वहां धार्मिक स्वतंत्रता की आज़ादी में कमी आई है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि सीएए लागू होने के तुरंत बाद भारत भर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन शुरू हुए और सरकार ने प्रदर्शनकारियों के ख़िलाफ़ एक हिंसक कार्रवाई की. लेकिन उसको लेकर भी लोगों में नाराज़गी है और लोग कह रहें हैं कि एनपीआर दरअसल एनआरसी का पहला क़दम है और इसलिए वो इसका भी विरोध करेंगे.रिपोर्ट में नेशनल पॉपुलेशन रजिस्टर(एनपीआर) पर भी उंगली उठाई गई है. मोदी सरकार ने अप्रैल 2020 से देश भर में एनपीआर अपडेट करने का काम शुरू करने का फ़ैसला किया है.
अमरीकी रिपोर्ट में कहा गया है कि एनपीआर को लेकर ऐसी आशंकाएं हैं कि यह क़ानून भारतीय नागरिकता के लिए एक धार्मिक परीक्षण बनाने के प्रयास का हिस्सा है और इससे भारतीय मुसलमानों का व्यापक नुक़सान हो सकता है.